ऐसा नहीं है की ये बेहतर है और जो पहले किया वो बेहतर नहीं था या मैंने उसमें मन लगाकर काम नहीं किया. मेरी एक आदत है की जब मेरा मन नहीं लगता तो मैं वो काम छोड़ देता हूँ. इसलिए जब भी लिखा पूरी इमानदारी से लिखा. ये एक मेरी आदत है की मैं जब लिखने पर आता हूँ तो मैं २४X७ काम करता हूँ. हर वक़्त लिखना या लिखने के बारे में सोचना. उसमें अगर कोई विघन्न आ जाए तो वो मुझे बिलकुल पसंद नहीं.
टीवी और फिल्म बनाने में बहुत पैसा लगता है और कम ही बन सकती है, ऐसे में कई बार कहानियाँ शुरू होती है मगर पूरी नहीं होती, मेरे पास कम से कम २० से ज्यादा नावेल के बराबर मटेरियल लिखकर पड़ा है. जिसको लिखने में समय लगा लेकिन अभी भी वो सम्पूर्ण नहीं है तो वो दर्शक के पास नहीं भेजा जा सकता. इसके बावजूद वो कहानियां मेरे जहाँ में घूमती रहती है, और अगर मैं उनको बाहर ना निकालूँ तो मुझे खटकता रहता है. ऐसे में उपन्यास एक अच्छा माध्यम समझ आया. इसकी अपनी चुनौतियां है, जैसे छोटा मार्किट होना या पब्लिशिंग में मैं बिलकुल नया हूँ, बस एक बात है जो ख़ास है की अच्छा उपन्यास लिखने में बहुत समय लगता है और वैसे ही अच्छा काम फिल्म या टीवी के लिए.
फिल्म और टीवी में पहले ही डील हो जाती है की मुझे कितना पैसा मिलेगा लेकिन अभी यहाँ उपन्यास में मुझे बिलकुल भी नहीं पता की मैं १०० रुपये कमाऊँगा या करोड़. लेकिन मजा कहानी लिखने का है तो वो करके मैं बहुत संतुष्ट हूँ. कमसेकम अभी के लिए
इससे जुड़ा एक किस्सा याद आता है। कहते हैं neverwhere मिनी-सीरीज नील गैमन ने ही लिखी थी। इसी नाम के उपन्यास पे वो साथ साथ काम कर रहे थे। तो उन्होंने neverwhere के इंट्रोडक्शन में लिखा था कि जब भी कभी टीवी वाले उन्हें उस सीरीज में बदलने के लिए कुछ कहते तो वो उनसे यही कहते कि जो जो चीज तुम इधर कटवा रहे हो वो मैं अपने उपन्यास में रखूँगा। हुआ भी ये। और रिजल्ट ये रहा कि टी वी सीरीज तो सफल नहीं रही लेकिन किताब बहुत चर्चित हुई और उसने काफी नाम कमाया। अब ये कितना सही है या गलत ये नहीं कह सकता लेकिन कई बार उपन्यास आपको बड़ा फलक दे देता है जहाँ आप कल्पना की कूची से कैसे भी रंग भर सकते हैं। टीवी और फिल्म की अपनी रुकावट होती है। कई बार कल्पनाओं को सही रूप देने लायक धन उसमें नहीं होता है और न तकनीक ही होती है। फिर जो बनता है वो अधकचरा सा रहता है और उपन्यास के सामने वो फीका सा लगता है।
ReplyDeleteइसलिए शायद बाहर हर अच्छे सीरीज के किरदारों को novel के तौर पर भी लाया जाता है। मैं कई बार सोचता था कि सी आई डी, अदालत जैसे धारावाहिक उपन्यास या कहानी के तौर पर छपे तो क्या लोक प्रिय नहीं होंगे।उनकी अपनी फेन फोल्लोविंग है। और उपन्यास लेखक और पाठक दोनों को इन किरदारों का विस्तृत व्यक्तित्व देखने को मिल सकता है।
https://en.wikipedia.org/wiki/Neverwhere_(novel)
उपन्यास में बड़े फलक वाली बात सही है, मैंने भी यथार्थ में ये उपन्यास लिख कर साक्षात पाया. टीवी और फिल्म में एक सीमा पता होती है की ऐसा कुछ लिख दूंगा जिसमें पैसा या प्लानिंग लगने वाली है तो वो नहीं हो पायेगा या होगा तो अच्छे किस्म का नहीं होगा. CID और अदालत का उपन्यास में आने पर क्या होता ये तो जासूसी उपन्यासों की सफलता देख लगता है की वो भी सफल होते. बाकी समय के साथ देखिये क्या क्या लिखा जाता है और मार्किट कैसे रेस्पोंसे करता है
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