मुझे एक आदत है एक टारगेट रख कर पूरा करना और फिर दूसरा नया चैलेंज उठा लेना.
ये २०१२ की बात है, मैं टीवी में बहुत कुछ कर चुका था. सिवाए एक काम के अपना खुद का शो बनाना, परन्तु उसकी जल्दे नहीं थी क्यूँकी मैं फिल्म बनाने आया था और बहुत सारे सपने थे कहानियाँ कहानी का. वो सब कहीं फिट बैठता हुआ नहीं दिख रहा था. मैं उस समय काम करते हुए २ फिल्म लिख रहा था जिसके बनने की काफी संभावना थी और साथ में एक दोस्त के साथ ये टेक बिजनेस पर बात चल रही थी. एक दिन कुछ अनबन हुई और मैंने अपनी नौकरी छोड़ दी. उसके बाद पता चला की फिल्म भी नहीं बनेगी, फिर ये कंपनी जो पार्ट टाइम था वो मैं जॉब बन गया. मैं पागलों की तरह इसको सफल होते देखना चाहता था, मेरे लिए एक नयी चुनती बन गयी थी.
हर दिन ये एहसास होता की मैं कहानी क्यूं नहीं लिख रहा, फुल टाइम कहानी लिखने का मजा कुछ और था और अभी मैं कभी कभी कुछ लिखता था, पढ़ तो और भी कम पाता था, कहानियों पर रिसर्च एक दम ख़तम हो गया था. ये सब मुझे बहुत बुरा लगता लेकिन मैं वो सब भूल कर ये कंपनी खड़ी करने में लगा था ताकी मुझे पैसों की चिंता ना हो. पर जीवन मुझे एक और ज्ञान देने वाली थी, जिसमें तजुर्बा ना हो और मन न लगे तो काम नहीं हो सकता. वो कंपनी नहीं चली और मेरे पास फिर से लेखनी पर फोकस करने के लिए समय आ गया.
शुक्रगुजार हूँ की ऐसा हुआ.. कंपनी खोलने के पीछे भी मकसद अच्छी कहानियाँ कहने का इरादा था, कंपनी एक मूवी स्ट्रीमिंग की कंपनी थी जहां कोई भी अपनी फिल्म ऑनलाइन दिखा कर पैसे बना सकता है. मुझे लगा ये बढ़िया रास्ता खुल जाएगा, साल की २ फिल्म बनाओ लेकिन वो संभव नहीं हुआ.
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