कुछ एक दोस्तों ने ये संघर्ष के विषय में बताने को कहा - तो पेश है
२००७ - IIT से पास होकर मुंबई आ गया.
२००६ - एक साल पहले समर इंटर्न करने के बहाने मुंबई आया था ३ महीने के लिए, तब RGV ग्रुप के कई फिल्म डायरेक्टर के साथ कहानी बनाना और क्या करना है समझा - लेखनी पसंद थी और यहाँ जरूरत भी, जो देखो बुरी कहानियों के वजह से फिल्म नहीं चलने की बात करते थे.
२००७ -
बहुत प्रोडक्शन हाउस में कम माँगने गया लेकिन काम नहीं मिल रहा था. बल्की लोगों से बातें भी नहीं होती. किसी को जानता भी नहीं था. ४ हजार रुपये लेकर आया था जो ख़त्म होने लगे... मैंने सोचा होम क्लासेज ले लेता हूँ. कोशिश भी करी, १-२ बच्चे मिले और तभी अगस्त में मुझे एक फिल्म "राईट या रौंग" में असिस्टेंट डायरेक्टर के तौर पर काम करने का मौक़ा मिला. क्लासेज वाली बात वही रह गयी.
फिल्म की १ शिफ्ट करके के बाद मैं उदास हो गया. ७ हजार की जॉब थी ना घर का किराया होता और ना खाने को... ना ही गाडी लेकर सेट पर जाने को. तभी मुझे नौकरी से भी निकाल दिया गया
कुछ महीने मैंने शेयर मार्किट में ट्रेडिंग किया ताकी कुछ पैसा इकठ्ठा कर सकू . लेकिन वहाँ भी घाटा लग गया
तभी एक मित्र ने जाकारी दी, डबिंग फिल्मों में लेखक की जरूरत है, मैंने किया नहीं था लेकिन काम करने में कोई हर्ज़ नहीं था. मैंने जम कर करीब १ साल तक अंग्रेजी फिल्मों की डबिंग करता रहा.
फिर देखा की इसका भविष्य बहुत अच्छा नहीं है और डबिंग स्क्रिप्ट लिखने का रेट तेजी से गिरता ही जा रहा है.
तभी मुझे बालाजी के एक लेखक ने अपने साथ जुड़ने का मौक़ा दिया... वो एक फिल्म लिख रहे थे और मैं भी उनके साथ फिल्म लिखने लगा. २ महीने बाद वो अचानक गायब हो गए और पता चला वो पागलखाने में है. बहुत दुःख हुआ क्यूँकी काफी अच्छे इंसान थे और उनके परेशानी को मैं जानता था. उनसे समझ में आया था की टीवी आराम से लिखा जा सकता है, बस डिसिप्लिन चाहिए
२००८ :
पता चला की टीवी लेखनी में मौक़ा एक घोस्ट राइटर के तौर पर मिलता है. तो मैंने कई टीवी के लेखकों का नाम पता किया और उनके पास काम माँगने गया लेकिन बात नहीं बनी. इसी बीच मैं २ शोर्ट फिल्म्स, मुंबई के बहुत बड़े एडवरटाइजिंग मुंद्रा के साथ और दूसरा एक संजय लीला भंशाली के साथ काम किये हुए डायरेक्टर के साथ काम करने का मौक़ा मिला - "सुनो ना" नाम की फिल्म थी. पर इन सबमे पैसा नहीं मिल रहा था और मेरी माली हालत बहुत खराब हो गयी थी, अच्छा था की कॉलेज के दोस्त पैसा कमा रहे थे तो उनसे बहुत उधार लिया. लेकिन बहुत अखरता भी था की ऐसा कब तक चलेगा
मुझे एक फिल्म लिखने को मिली और प्रोडूसर बहुत नमी गिरामी है. उन्होंने एडवांस में पैसे भी दिए और काम चालु हो गया. बस मुझे समझ नहीं आ रहा था की मैं लिखूं क्या.. ऐसा महसूस होता था की ये फिल्म बन भी गयी तो फ्लॉप ही होगी. मैंने उस फिल्म को लिखने के लिए लिखना सीखना चाहता था और मैं टीवी में कोशिश कर ही रहा था तो मैंने अपने दसवी क्लास में साथ पढ़ने वाले एक लड़का जो टीवी इंडस्ट्री में शक्रिया था, उससे किसी लेखक का नाम बताने को कहा जहां काम मिल सके.
२००९ :
उसने मुझे टीवी के एक मशहूर लेखक के पास जाने का सलाह दिया और उनका नंबर भी दिया. मैंने लेखक साहब से बात की, मिलने गया और जॉब लग गयी. वो लिखते टीवी थे लेकिन उनको एक फिल्म लिखवानी थी. मैं उनकी फिल्म लिखने लगा और साथ में दूसरे प्रोडूसर की फिल्म. २ फिल्में लिख रहा था और अगले १ महीने में दोनों ही बंद हो गयी. अपनी अपनी वजहों से.
टीवी वाले लेखक के यहाँ "अगले जन्म मोहे बिटिया कीजो" का पटकथा लिखा जा रहा था. किस्मत से ये शो मुझसे पहले भी टकरा चुका था और अब फिर से ये मेरे सामने था. कहानी बिहार की पृष्ठभूमि पर थी और गांव की कहानी थी जहां मैंने अपने जीवन का बहुत बड़ा समय गुजार चुका था, काफी अनुभव था. तो लिखता गया और सीखता गया... और मेरे काम को बहुत सराहा गया और सीरियल भी देश भर में फेमस हुआ. तभी उन लेखक के हाथ से ये शो चला गया और दूसरा शो मिला नहीं तो मुझे भी लिखने को कुछ नहीं मिल रहा था.
२०१० :
तभी मेरी शादी तय हो गयी. अब एक मासिक आय की जरूरत थी और मैं ऐसी नौकरी ढूँढने लगा जिसमे हर महीने काम हो और पैसे आये. तभी २ सीरियल मेरी नजर में थे. लापतागंज और आहट - दोनों शो में मैंने अपनी लिख कर भेजी, लापतागंज वालों का कोई जवाब नहीं आया और fireworks प्रोडक्शन हाउस ने कहानी लिखने के जॉब पर रख लिया.
३ साल तक खूब लिखा.. cid की रेटिंग १.२ से ६ से ऊपर निकल गयी और टीवी का नंबर १ शो बन गया. मुझे फिल्मों में कुछ करना था, साइड से मैं अपनी एक फिल्म लिख रहा था जो कुछ हद तक कमिसन थी लेकिन पैसे नहीं मिले थे. एक हॉरर फिल्म थी वो भी एक डायरेक्टर बिना पैसे लिखवा रहा था. जबकी मैं ये सब काम ज्यादा पैसे कमाने के लिए कर रहा था.
२०१२
मैंने iit किया था और टेक्नोलॉजी में बहुत पैसा है, और मुझे ऐसा लग रहा था की फिल्म वालों को पैसे कमाने का मौक़ा मिल जाये तो फिल्म बनाना कितना मजेदार हो जाए. तो मैंने एक ऑनलाइन प्लेटफार्म बनाने का प्लान किया अपने iit के सहपाठियों के साथ. लेकिन वो नहीं चला और बहुत नुकसान हुआ
२०१४ - २०१५
इस बीच मैं अदालत, फियर फाइल्स और कुछ सीरियल के एपिसोड लिखता रहता था लेकिन मैं डिप्रेशन में आ गया था... इतनी उधारी चढ़ गयी थी की समझ नहीं आ रहा था की मैं बाहर कैसे निकालूँगा. हर कुछ महीने पर मैं पैसे जमा करता और एक के बाद एक कम्पनीज खोलता गया और सब बंद होती गयी... पैसे का और ज्यादा नुकसान हुआ.
मैंने अब तय कर लिया था की लेखनी आती है और उसमें मजा भी आता है, तो ये सब संघर्ष करने से अच्छा है की मैं लेखनी ही करूं. लेकिन मैं सिर्फ टीवी और फिल्म के भरोषे नहीं बैठना चाहता था. मैंने टीवी के साथ साथ हिंदी पल्प पढ़ा.. कॉमिक्स में काम के मौके देखे... विडियो गेम्स में भी कहानिया लिखी जाती है लेकिन वो माहौल भारत में नहीं आया था.
२०१६
तभी मेरा पैर टूट गया और ऑपरेशन हुआ... करीब २ महीने मैं घर से बाहर नहीं जा पाता था. ऐसे करीब एक साल बीत जाने थे तो मैंने लिखने के विषय में बहुत से लेखकों को पढ़ा, उनके विडियो देखे... बहुत सी किताबें पढी.
२०१७
अब मैं अपने दम पर आने जाने लगा था.... अपने लिखे टीवी शो पिच किये, जो बने नहीं. कुछ टीवी सीरियल के लिए स्क्रिप्ट सुपरवाइज़ किया. आखिरकार मैं अब कहानी लिखने के लिए बेचैन था.
अमेज़न ने सेल्फ पब्लिशिंग को लेकर जो काम किया था वो मुझे बढ़िया लगा और मैंने उपन्यास की दुनिया में अपना हाथ आजमाने का सोचा..
२०१८
फिर करीब १८ महीने में, मेरा पहला उपन्यास "कौवों का हमला" पूरा हुआ.. जो अब प्रकाशित होकर पाठकों के बीच जाने को तैयार है
आपकी दास्ताँ प्रेरक है। सही कहते हैं कि लेखक ज़िद्दी होते हैं। इसी ज़िद का नतीजा है कि आपका उपन्यास आज तैयार है। उपन्यास के लिए शुभकामनाएं। और अपनी इस प्रेरक दास्ताँ को साझा करने के लिए आभार। कई लोगों को ये प्रेरणा देंगी।
ReplyDeleteधन्यवाद विकास जी.
DeleteVery inspirational Ajay...thank you for sharing. Salute to your 'never say die' attitude. The following quote is for you:
ReplyDeleteडर मुझे भी लगा फासला देख कर, पर मैं बढ़ता गया रास्ता देख कर,
खुद ब खुद मेरे नजदीक आती गई, मेरी मंजिल मेरा हौंसला देख कर |
वाह! बहुत बहुत धन्यवाद विक्रम जी
ReplyDeleteAapke safarnaamey ki dil se vyakhya main pele hi kar chuka hun bhaiya...motivation and inspiration personified...a great story n help for the strugglers...!!!♥️����
ReplyDeletethnx
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